: फिर कल मीडिया-ट्रायल करने क्यों पहुंचे थे आप मिस्टर जस्टिस : ठन गयी तो सीधे मीडिया में पहुंच गये, अब इस बयान का क्या अर्थ समझा जाए : मीडिया का इस्तेमाल कर आप अपनी हांडी में क्या पका रहे रहे हैं, पूरा मुल्क समझ रहा है : गजब हावभाव दिखने लगा है इन जजों के रवैयों में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अभी दो दिन ही हुआ है, जब भारत की न्याय-पालिका के कारनामों से पूरी दुनिया दहल गयी। अपने 70 बरस पुराने इस देश की आजाद न्यायपालिका ने शांत होने के भ्रम को तोड़ दिया और खुलेआम ऐलान कर दिया और वे अपने सर्वोच्च न्यायाधीश से बगावत बैठे। यह एक अभूतपूर्व संकट था, जिसकी कल्पना तक कोई नहीं कर सकता था। देश को अपने कानों पर यकीन तक नहीं आया कि सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे पायदान पर खड़े एक वरिष्ठतम जस्टिस के नेतृत्व में चार जजों ने सर्वोच्च न्यायाधीश की सल्तनत से बगावत कर दी थी। किसी ट्रेड-यूनियन के नेताओं के डेलीगेशन की तरह हारे-लुटे-पिटे यह चारों जज पत्रकारों के सामने हाथ जोड़ कर पहुंचे, और बेहद विनम्र स्वर में बोले कि उनकी बात लीजिए, और उनकी बात पूरे देश की जनता तक पहुंचायी जाए।
लेकिन आज अचानक ही इन जजों के रवैये में गजब बदलाव आ गया। दीपक मिश्र के बाद के दूसरे नम्बर के जज कुरियन जोसेफ शनिवार को बदले-बदले अंदाज में दिखे। कोच्चि में उन्होंने यह बयान भी दिया कि न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने कोच्चि में कहा कि शीर्ष न्यायालय में कोई भी संवैधानिक संकट नहीं है और जो मुद्दे उन लोगों ने उठाए हैं, उनके सुलझने की पूरी संभावना है। उन्होंने कहा कि, " हमने एक मुद्दा उठाया है। संबंधित लोगों ने इसे सुना है। इस तरह के कदम भविष्य में नहीं दिखेंगे। इसलिए (मेरा) मानना है कि मुद्दा सुलझ गया है। मामले को हल करने के लिए बाहरी हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह मामला संस्था के भीतर हुआ है। इसे हल करने के लिए संस्था की ओर से जरूरी कदम उठाए जाएंगे।"
कमाल है। गजब बात कह दी है जस्टिस कुरियन जोसेफ ने। दो दिन पहले दीपक मिश्र के खिलाफ जेहाद छेड़ देना, और फिर अब उनका यह बयान देना, कि कोई संकट नहीं है न्यायपालिका और सर्वोच्च न्यायालय में, बेहद गहरे सवाल पैदा करने लगा है। खास तौर पर तब, जबकि जस्टिस कुरियन जोसेफ के अनुसार मामले को हल करने के लिए बाहरी हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं दिख रही है, क्योंकि यह मामला संस्था के भीतर हुआ है। इसे हल करने के लिए संस्था की ओर से जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
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क्या गजब बात कह रहे हैं आप जस्टिस कुरियन जोसेफ जी। आपको बता दें कि इन्हीं जस्टिस कुरियन समेत चार जजों ने दो दिन पहले ही पूरे मुल्क को हिला दिया था। पूरा देश भौंचक्का हो चुका था इन जजों के बयान और जाहिर है कि न्यायपालिका के तौर-तरीकों और उठापटक से। हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र तक को सर्वोच्च न्यायाधीश के घर जाते देखा गया। हालांकि बाद में नृपेंद्र मिश्र के यहां से यह सफाई दी गयी कि वे नये साल की मुबारकबाद वाला कार्ड देने को दीपक मिश्र के घर गये थे, लेकिन कार्ड उनके घर के दरवाजे पर ही सौंप देकर वापस चले गये। मगर यह जवाब समझ में नहीं आता है, खास तौर पर तब जबकि नये साल को पूरा एक पखवाड़ा बीत चुका हो।
लेकिन अब एक ओर जोसेफ कुरियन यह बयान दे रहे हैं कि अब कोई संकट नहीं है, वहीं दूसरी ओर मुल्क के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बयान दिया कि सभी जजों के साथ मिलकर इस मामले को सुलझा लेंगे। एक खबर यह भी आ रही है कि जस्टिस चेलमेश्वर और सीजेआई की शनिवार को मुलाकात न होने पाने के चलते पूरा विवाद लम्बा खिंच सकता है। फिर सवाल यह है कि जब कुरियन जोसेफ को यह मामला इतना छोटा दिख रहा था, तो उस पर वे खुलेआम प्रेस कांफ्रेंस करने क्यों पहुंच गये। क्या वजह है कि अचानक आज इतने शांत क्यों हो गये। क्यों वेगुगोपाल इस मामले को एक विवाद के तौर पर देख रहे हैं। क्यों नृपेंद्र मिश्र जैसा एक कद्दावर नौकरशाह जो सीधे प्रधानमंत्री का प्रधान सचिव हो, वह सर्वोच्च न्यायालय के घर क्यों पहुंच गया है। वे भी बेवक्त।
जरा गौर कीजिए कि कुरियन जोसेफ के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘‘मामले को हल करने के लिए बाहरी हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह मामला संस्था के भीतर हुआ है। इसे हल करने के लिए संस्था की ओर से जरूरी कदम उठाए जाएंगे।’’ उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश की तरफ से कोई संवैधानिक खामी नहीं है, लेकिन उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए परंपरा, चलन और प्रक्रिया का अनुसरण किया जाना चाहिए। जबकि यही जस्टिस कई मामलों के ‘‘चुनिंदा’’ तरीके से आवंटन और कुछ न्यायिक आदेशों के विरुद्ध देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ बाकायदा बगावत पर आमादा दिखे थे।
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‘‘हम सिर्फ मामले को उनके संज्ञान में लाए हैं.’’, ‘‘न्याय और न्यायपालिका के पक्ष में खड़े हुए. यही चीज कल वहां (नयी दिल्ली में) हमने कही.’’, ‘‘एक मुद्दे की ओर ध्यान गया है. ध्यान में आने पर निश्चित तौर पर यह मुद्दा सुलझ जाएगा.’’, ‘‘न्यायाधीशों ने न्यायपालिका में लोगों का भरोसा जीतने के लिए यह किया.’’, ‘‘शीर्ष अदालत में हालात सही नहीं हैं’, ‘‘अपेक्षा से कहीं कम’, ‘‘... कभी उच्चतम न्यायालय का प्रशासन सही नहीं होता है और पिछले कुछ महीनों में ऐसी कई चीजें हुई हैं जो अपेक्षा से कहीं कम थीं.’’,‘‘चयनात्मक’’, ‘‘कोई संकट नहीं है.’’ वगैरह-वगैरह बातें इस पूरे मामले पर सही रौशनी डाल पाने में सक्षम नहीं दीखती हैं।
अब हम आपसे केवल एक सवाल पर आपका जवाब जानना चाहते हैं योर ऑनर। हमारा यह सवाल देश की जनता की ओर से आपसे है। सवाल यह है कि जब सब इतना ही सहज, सरल, साध्य, शांत, हल्का-फुल्का और सुपाच्य प्रकरण था यह, तो फिर आपको मीडिया के पास पहुंच कर हाथ जोड़ने की जरूरत क्या पड़ी। क्यों आप जनता के पास पहुंचे, आप आखिर क्या चाहते थे हम से, मीडिया से और खास बात तो यह कि देश की जनता के साथ ही साथ पूरे मुल्क से।
योर ऑनर। हम जानते हैं कि आप हमारे इस सवाल का जवाब शायद कभी भी नहीं दे पायेंगे। लेकिन हम इतना तो सोच ही सकते हैं आपके व्यवहार से, कि मामला इतना हल्का-फुल्का नहीं है यह, और यह भी कि आपने हम मीडिया का इस्तेमाल किया है। आप हमें हमारे सवालों का जवाब भले न दें, लेकिन इतना यकीन रखिये योर ऑनर, कि पूरा देश कम से कम इतना तो समझ ही रहा है कि इस हांडी में क्या-क्या पक रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय में जो कुछ भी हुआ, वह वाकई बेहद निराशाजनक साबित हुआ है। हमारा प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम इस मसले पर लगातार निगाह रखे है। हम इस मामले पर आपको ताजा विचार और समाचार उपलब्ध कराते रहेंगे। इस मसले की दीगर खबरों को देखने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक करें:-
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