: भुलक्कड़ी से मामला दक्खिन होता, आपातकाल का नारा मुफीद था : गुजरात में कांग्रेस की सक्रियता से यूपी के बुढ़ाते तुर्कों की जवानी लौट आयी : गुजरात में कांग्रेस के प्रति आशा नहीं, भाजपा के प्रति खीझ भाव है : अपनी कथरी-चीवर पर गुलाबी रंग से चटखा देने पर आमादा हैं खंडहरों वाले कांग्रेसी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : दूसरा सवाल यह कि जमानत बांड निरस्त होने के 33 बरस तक चंचल जी ने अपनी खामोशी क्यों अख्तियार की। वजह है लापरवाही, या फिर सिर्फ मस्ती, अक्खड़पन। आप उसे भुलक्कड़ई भी कह सकते हैं, लेकिन यह शब्द चंचल जी खुद ही पसंद नहीं करेंगे। क्योंकि ऐसा करने से उन पर बुढ़ौती का ठप्पा लग जाएगा, जिससे उनकी राजनीति ही दक्खिन हो जाएगी। कोई भी समाजवादी व्यक्ति अपना ऐसा भविष्य नहीं चुनना चाहेगा। लेकिन हाय दैव, देश के अधिकांश पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों की नीयति यही ही रही है। ऐन-केन-प्रकारेण उनकी जगह छात्रसंघ और शिक्षा-परिसर तक तो पहुंच गयी, लेकिन जन-मानस ने या तो उन्हें खारिज कर दिया, या फिर वे खुद ही जन-मानस तक पहुंचने का साहस नहीं जुटा पाये। चंचल-भू की भी यही रही।
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ऐसे में यह जेल-यात्रा आज अचानक क्यों?
यह सवाल बिलकुल मौजू और वाजिब भी है। आप गौर से गुजरात की ओर निगाह डालिये, वहां कांग्रेस बढ़त में है। हालांकि जीत का पाला छूने की हालत अब तक नहीं बन पायी है, क्योंकि कांग्रेस ने कोई मेहनत ही नहीं की। ठीक उसी तरह, जैसे यूपी-बिहार या कोई अन्य हिन्दी-भाषी राज्य। नतीजा यह कि गुजरात में जो भी वोट नैराश्य भाव में गिरेंगे, वह मोदी, अमित और भाजपा की हरकतों-पराजयों का परिणाम होंगे, कांग्रेस की जीत के तौर पर नहीं। लेकिन इसके बावजूद जीत का ग्राफ अहमद पटेल की अब तक बनायी गयी निजी राजनीति तक ही सिमटी रही है। वे गुजरात कांग्रेस को अपनी जेबी संगठन से उबारना ही नहीं चाहते थे, और कांग्रेस के पास गुजरात में कोई मुसलमान कांग्रेसी ही नहीं।
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खैर, दूसरा मामला यह है कि इस चुनाव में कांग्रेस ने खूब रकम लुटायी है, चाहे वह वोटों को जुटाने के लिए हो, उनकी भीड़ खरीदने में हो या फिर प्रत्याशियों की मदद करने के लिए हो। खैर, वह भी कोई खास मुद्दा नहीं है आज। हमारा मुद्दा तो यह है कि कांग्रेस की बढ़त की रफ्तार अगर काफी बढ जाती है, तो भाजपा को चुनौती दे सकती है कांग्रेस। सवाल यह नहीं कि गुजरात में कांग्रेस जीतेगी या नहीं, कांग्रेसियों में उम्मीद तो यह है ही कि वहां भाजपा की छवि पर ठेस आयेगी। ऐसे में उसका असर सन-19 में यूपी में कांग्रेस के धर-पटक पर पड़ सकता है। और जाहिर है कि फिर चंचल जैसे नेताओं की पौ-बारह हो सकती है। लेकिन ऐसा तब ही सकता है, जब उसके चंचल जैसे नेता खुद को जमीनी नेता साबित कर सकें।
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लेकिन सबसे बड़ी और इकलौती दिक्कत यह थी कि कांग्रेस का झंडा कौन थामे। जौनपुर में कांग्रेस के चंद नेता भले ही हों, लेकिन बदलापुर क्षेत्र में तो चंचल ही इकलौता वन मैन आर्मी के तौर पर फेसबुक पर खूब तलवारें भांजते रहे हैं। ऐसी हालत में ऐसी हालत में चंचल के पास इकलौता रास्ता ही था, वह था जेल यात्रा। पूरा मामला पका-पकाया पड़ा हुआ था, केवल उंगली में खून लगाना था, और फिर खुद को शहीद के तौर पर पेश करना था। चंचल जी ने यही किया। वरना क्या वजह है कि यह जानते हुए भी कि गैरजमानती वारंट पर सुनवाई शाम को नहीं, बल्कि सिर्फ दोपहर तक ही होती है, चंचल-भूजी जी दोपहर बाद ही कोर्ट पहुंचे। जैसा कि होना ही था, चंचल जी को हवालात में बंद कर दिया गया, जहां से शाम को वे सामान्य कैदियों की तरह जेल रवाना कर गये।
चंचल-भूजी जी एक, लेकिन उनकी कथा अनन्ता। अगली कड़ी उनकी जेल-भित्तरगिरी पर। बाकी कडियों को बांचने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्पष्ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।
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